मुझ को जो तुम से हुआ वो प्यार भी उजलत में था प्यार क्या इस प्यार का इज़हार भी उजलत में था इक पयम्बर को किया नीलाम कुछ सोचे बग़ैर किस क़दर वो मिस्र का बाज़ार भी उजलत में था दौड़ते ऊँटों से गिरते राहियोँ को छोड़ कर क़ाफ़िला और क़ाफ़िला सालार भी उजलत में था है मिली मुझ को सज़ा-ए-ज़ीस्त तो बस इस लिए मुंसिफ़ी उजलत में पैरवकार भी उजलत में था दिन अभी निकला नहीं और बे-ख़तर वो सो गया उस गली का सुस्त पहरे-दार भी उजलत में था था वो उजलत में जिसे करना था दिन भर काम और घर में बिस्तर पर पड़ा बे-कार भी उजलत में था फूल को छेड़ा नहीं और 'क़ैस' ज़ख़्मी हो गया मुंसलिक उस शाख़ से इक ख़ार भी उजलत में था