मुझ को तक़दीर ने यूँ बे-सर-ओ-आसार किया एक दरवाज़ा दुआ का था सो दीवार किया ख़्वाब-ए-आइंदा तिरे लम्स ने सरशार किया ख़ुश्क बादल थे हमें तू ने गुहर-बार किया देखने की थी निगाहों में अना की सूरत उस गिरफ़्तार ने जब मुझ को गिरफ़्तार किया मुद्दतों घाव किए जिस के बदन पर हम ने वक़्त आया तो उसी ख़्वाब को तलवार किया मेरी चाहत ने अजब रंग दिखाया मुझ को कश्मकश से मिरी आँखों को गिराँ-बार किया इक मसीहा को मिरा चश्म-नुमा ठहराया एक क़ातिल को मिरा आईना-बरदार किया काट कर फेंक दी संसार की कूचें हम ने सब्र को फूल किया फूल को तलवार किया