मुझ में मौजूद है वो शख़्स ज़माने का नहीं कोई भी तीर मिरे पास निशाने का नहीं आप ख़ुद देख लें तिमसाल-गरी की सूरत इस का ख़ाका जो उभरता है बताने का नहीं ख़ून खौल उठता है क्यों दार की उर्यानी पर मेरा किरदार है और मेरे फ़साने का नहीं मिरा एहसास लगाता है कचोके मुझ को ज़िंदगी मुझ से तिरा क़र्ज़ चुकाने का नहीं ये नया घाव है इक दोस्त का तोहफ़ा 'मेहदी' ज़र्ब कारी है नया ज़ख़्म दिखाने का नहीं