मुझ में आ कर ठहर गया कोई हुस्न-ए-दिल में उतर गया कोई कैसी दी ये मुझे किताब-ए-इश्क़ पढ़ते पढ़ते बिखर गया कोई आज ख़ुशबू भरे गुलाबों से मेरे दामन को भर गया कोई अपना अपना था आइना सब का जाने किस में सँवर गया कोई हाल-ए-दिल उस ने आज क्या पूछा जैसे दरिया ठहर गया कोई ले के काँधों पे अपने फिरती हूँ मेरे अंदर ही मर गया कोई रौशनी भीक में नहीं मिलती अपनी जाँ से गुज़र गया कोई अब न हँसती हूँ और न रोती हूँ कैसा जादू सा कर गया कोई राख कहती थी 'शम्अ'' की उड़ कर हाए वक़्त-ए-सहर गया कोई