मुझ में पैवस्त हो चुकी हो तुम मेरे अंदर की ख़ामुशी हो तुम क्या फ़क़त शौक़ रह गया हूँ मैं किस तरह बात कर रही हो तुम ख़ास ये है के मैं नहीं बदला और दिलचस्प के वही हो तुम इतना अंदाज़ा-ए-सफ़र है मुझे आख़िरी मोड़ पे खड़ी हो तुम किस क़दर चीख़ने लगा हूँ मैं कितनी ख़ामोश हो गई हो तुम ख़्वाब में क्या दिखाई पड़ता है किस के काँधे पे सो रही हो तुम एक धक्का सा लग गया है मुझे सुन लिया है के रो रही हो तुम