मुझ में तन्हाई मिरी और मैं तन्हाई में अजनबी हो गए सब दश्त-ए-शनासाई में अपने अंदर ही रऊनत की फ़ज़ा है शायद लोग उतरते ही नहीं रूह की गहराई में खुल गया अब कि है आदाब-ए-मोहब्बत बड़ी चीज़ हम जो मारूफ़ हुए जल्वा-ए-रुस्वाई में ये तो तय है कि मुझे तुझ से जुदा होना है मिस्ल आँसू हूँ तिरी चश्म-ए-तमन्नाई में आप तो हश्र उठाने के लिए कहते थे आँख तक उठ न सकी आलम-ए-रुस्वाई में उम्र काटी है इसी एक तलब में 'आफ़ाक़' इक नज़र देख ले मुझ को कोई तन्हाई में