मुझ से अब साफ़ भी हो जा यूँही यार आप से आप जिस तरह है तिरी ख़ातिर में ग़ुबार आप से आप कब कहा आतिश-ए-फ़ुर्क़त से जलाया तू ने हैं मिरे नाला-ए-दिल साइक़ा-बार आप से आप ख़ार तदबीर है पेश-ए-गुल-ए-तक़दीर अबस वक़्त पर बाग़ में आती है बहार आप से आप दोनों आलम में अगर एक नहीं शो'बदा-बाज़ जम्अ' क्यूँ कर हुए अज़दाद ये चार आप से आप नहीं आता जो वो ख़ुर्शेद मिरे घर में न आए सुब्ह हो जाएगी आख़िर शब-ए-तार आप से आप कुछ शिकायत नहीं इश्क़-ए-कमर-ए-नाज़ुक की हो गया हूँ मैं सनम ज़ार-ओ-नज़ार आप से आप ओ वजूद-ए-चमन-आरा-ए-अज़ल के मुंकिर ख़ुद-बख़ुद गुल हुए मौजूद न ख़ार आप से आप सुर्ख़ पोशाक पहन कर वो सही क़द जो गया जल उठे सर्व-ए-चमन मिस्ल-ए-चिनार आप से आप ज़ुल्फ़ को छू के पड़ा है जो बला में ऐ दिल काट खाता है किसी को कोई मार आप से आप कुछ तिरी तेग़-ए-जफ़ा की नहीं तक़्सीर ऐ गुल सूरत-ए-ग़ुंचा मिरा दिल है फ़िगार आप से आप ग़ैर का मुँह है कि ले बोसे तिरे ओ ज़ालिम नीलगूँ हो गए होंगे ये एज़ार आप से आप नाला-कश मिस्ल-ए-जरस क्यूँ है अबस ऐ मजनूँ सब्र कर आएगी जम्माज़ा-सवार आप से आप