मुझ से अफ़्सुर्दा न ऐ जोश-ए-बहाराँ होना कैफ़ में भूल गया चाक-गरेबाँ होना जब बिखर जाती है ज़ुल्फ़ और निखर जाती है मुझ को जमईयत-ए-ख़ातिर है परेशाँ होना ज़र्रा ज़र्रा है तजल्ली से लड़ाए हुए आँख किस क़यामत की नुमाइश है ये पिन्हाँ होना दूर हैं तुझ से अभी नूर के ज़र्रे हर-सू ऐ मिरी ख़ाक ज़रा और परेशाँ होना हसरत-ए-दीद ने आईना बनाया दिल को ऐन नज़्ज़ारा है नज़्ज़ारे का अरमाँ होना हुस्न हर शय को दिया इश्क़ मिला हर दिल को ताकि आसान हो इंसान का इंसाँ होना ख़ूब होता है नुमायाँ सुख़न-ए-'नातिक़' से मिस्ल-ए-मा'नी तिरा हर लफ़्ज़ में पिन्हाँ होना