मुझ से बिछड़ के वो भी परेशान था बहुत जिस की नज़र में काम ये आसान था बहुत सोचा तो बे-ख़ुलूस थीं सब उस की क़ुर्बतें जिस के बग़ैर घर मिरा वीरान था बहुत बे-ख़्वाब सुर्ख़ आँखों ने सब कुछ बता दिया कल रात दिल में दर्द का तूफ़ान था बहुत ये क्या किया कि प्यार का इज़हार कर दिया मैं अपनी इस शिकस्त पे हैरान था बहुत वहशत में क्यूँ किसी के गरेबाँ को देखता मेरे लिए तो अपना गरेबान था बहुत अब तो कोई तमन्ना ही 'बाक़ी' नहीं रही ये शहर-ए-आरज़ू कभी गुंजान था बहुत