मुझ से क्यों छीन ली है ख़ामोशी मेरी तो ज़िंदगी है ख़ामोशी शोर से रेज़ा रेज़ा हो कर भी ख़ामुशी में पड़ी है ख़ामोशी चाँद तब करवटें बदलता है बाल जब खोलती है ख़ामोशी मैं कई दिन से खो गया हूँ कहीं इस लिए रो रही है ख़ामोशी हाल-ए-दिल जब भी मैं सुनाता हूँ ज़ोर से चीख़ती है ख़ामोशी जिस तरह हो कोई हसीं दुल्हन यूँ सजा के रखी है ख़ामोशी