मुझ से मिलने शब-ए-ग़म और तो कौन आएगा मेरा साया है जो दीवार पे जम जाएगा ठहरो ठहरो मिरे असनाम-ए-ख़याली ठहरो मेरा दिल गोशा-ए-तन्हाई में घबराएगा लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा अज़्म पुख़्ता ही सही तर्क-ए-वफ़ा का लेकिन मुंतज़िर हूँ कोई आ कर मुझे समझाएगा आँख झपके न कहीं राह अँधेरी ही सही आगे चल कर वो किसी मोड़ पे मिल जाएगा दिल सा अनमोल रतन कौन ख़रीदेगा 'शकेब' जब बिकेगा तो ये बे-दाम ही बिक जाएगा