मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से By Ghazal << अगर कुछ होश हम रखते तो मस... बिछड़ गया है तो अब उस से ... >> मुझ से मुड़ने की नीं किसी रू से चश्म रखता हूँ तेरी अबरू से अब तो बैठा मैं नक़्श-ए-पा की तरह कोई उठता है यार की कू से हुस्न-ए-सीरत है लाज़िम-ए-महबूब ख़ूबी-ए-गुल है ख़ूबी-ए-बू से इश्क़ में दर्द से है हुर्मत-ए-दिल चश्म को आबरू है आँसू से Share on: