मुझ तही-जाँ से तुझे इंकार पहले तो न था तेरा और मेरे लिए दीवार पहले तो न था हुस्न ने सौंपी है ये कैसी निगूँ-सारी मुझे मैं किसी का आइना-बरदार पहले तो न था इस तरह तो पा-ब-जौलाँ हम न फिरते थे कभी इन गली-कूचों में ये बाज़ार पहले तो न था अब कहाँ से आई उस काफ़िर के दिल में रौशनी आइना हल्क़ा-ब-गोश-ए-यार पहले तो न था 'ताबिश' इक दरयूज़ा-गर को बाज़ रखने के लिए कोई दरवाज़ा पस-ए-दीवार पहले तो न था