मुझे भी जीने का एहसास अब ज़रा हो जाए कभी निकाल लो फ़ुर्सत तो रतजगा हो जाए न आरज़ू न ख़लिश कुछ नहीं किसी दिल में निगाह भर के जिसे देख लो तिरा हो जाए रहे जो दूर तो क्या क्या शरारतें उस की कभी क़रीब से गुज़रे तो दूसरा हो जाए मिरा न हो न सही मेरे रू-ब-रू तो रहे वजूद मेरा किसी तौर आइना हो जाए मिरे उसूल मिरी राह रोक लेते हैं ओजब नहीं कि चलूँ और रास्ता हो जाए