मुझे भी या-रब फ़राग़त-ए-माह-ओ-साल देना कभी मिरे दिल के हौसले भी निकाल देना ये ग़म की लम्बी अँधेरी शब किस तरह कटेगी उफ़ुक़ पे दिल के कोई किरन तो उछाल देना जो रोज़ ओ शब के नसीब में बे-दरी है लिखनी न ख़्वाब देना न दिल में शौक़ विसाल देना कभी अगर तुम हवाओ दश्त ओ जबल से गुज़रो तो उन की महरूमियों को मेरी मिसाल देना ये ज़िंदगी क्या मिरे अज़ाएम का साथ देगी मुझे कुछ इस से भी बढ़ के कार-ए-मुहाल देना वो दिल की चाहत ख़ुलूस की बैअतें कहाँ हैं नई कहानी से सब ये बातें निकाल देना