मुझे दरिया की मौजों से बचा ले जाएगा कोई मैं ऐसी बूँद हूँ जिस को चुरा ले जाएगा कोई बुझा कर ताक़ में रख देगा ये दस्त-ए-सहर मुझ को मगर जब शाम आएगी जला ले जाएगा कोई यही कुछ सोच कर अपनी हवेली छोड़ आया था अगर मैं रूठ जाऊँगा मना ले जाएगा कोई रईसों की ये बस्ती है खड़े हैं राह में साइल कहेगा हाथ में सिक्का दुआ ले जाएगा कोई मुझे अच्छा नहीं लगता किसी से माँग कर पढ़ना किताबें मैं ख़रीदूँगा उठा ले जाएगा कोई चुरा लाई है फूलों से मुझे बाद-ए-सबा 'ख़ालिद' मैं ख़ुशबू हूँ मुझे अपना बना ले जाएगा कोई