मुझे इस बात का शिकवा नहीं है कि जो मेरा था अब मेरा नहीं है मैं सच से रू-ब-रू हो जाऊँ कैसे मिरे कमरे में आईना नहीं है ग़रीबी में उठाए लाश ख़ुद की वो जीता है मगर ज़िंदा नहीं है मकाँ गूँजा जो उस के बोलने से वो तब समझा कि वो तन्हा नहीं है असर में हूँ तुम्हारे ये तो सच है मगर इतना गुमाँ अच्छा नहीं है