मुझे क्या देख कर तू तक रहा है तिरे हाथों कलेजा पक रहा है जहाँ क्यूँकर न हो नज़रों में तारीक तिरा मुँह ज़ुल्फ़ नीचे ढक रहा है तुम्हारी ना-क़दर-दानी का अफ़्सोस हमारे जी में मरते तक रहा है ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो नशे की लहर में कुछ बक रहा है फिरा अब तक नहीं 'हातिम' का क़ासिद ख़ुदाया राह में क्या थक रहा है