मुझे यक़ीन दिला हालत-ए-गुमाँ से निकाल ग़म-ए-हयात को बढ़ते हुए ज़ियाँ से निकाल फिर इस के ब'अद जहाँ तू कहे गुज़ारूँगा बस एक बार ज़रा कर्ब-ए-जिस्म-ओ-जाँ से निकाल मैं ऐन अपने हदफ़ पर लगूँगा, शर्त लगा ज़रा सा खींच मुझे और फिर कमाँ से निकाल मैं अपने जिस्म के अंदर न दफ़्न हो जाऊँ मुझे वजूद के गिरते हुए मकाँ से निकाल मैं एक शोला-ए-बदमस्त ही सही लेकिन मैं जल रहा हूँ मुझे मेरे दरमियाँ से निकाल ऐ डालियों पे नए फल उगाने वाली दुआ मिरे शजर को भी इस हालत-ए-ख़िज़ाँ से निकाल बुला रही है तुझे भी हवस की शहज़ादी तू अपने आप को इस लम्हा-ए-रवाँ से निकाल जिसे बहिश्त में आदम ने चख लिया था 'अतीब' मैं खा रहा हूँ वही फल, मुझे यहाँ से निकाल