मुझ को मालूम न था उन से मोहब्बत होगी दर्द पर दर्द मुसीबत पे मुसीबत होगी यही हालत है तो इक रोज़ ये सूरत होगी क़ैस-ओ-फ़रहाद से बढ़ कर मिरी वहशत होगी कर के बदनाम मुझे और ये कहना उस पर आप के मिलने से बे-शक मिरी ज़िल्लत होगी इज़्तिराब-ए-दिल-ए-मुज़्तर है बयाँ से बाहर तेरे दीदार से हासिल इसे राहत होगी ले ख़बर जल्द मसीहा तू ख़ुदारा आ कर तेरे बीमार की वर्ना बुरी हालत होगी दिल ये कहता है ज़रा चल तू दर-ए-जानाँ तक शर्म कहती है तिरे जाने में ज़िल्लत होगी मैं ने पूछा कि भला फिर भी मिलोगे साहिब बोले मुँह फेर के हाँ गर हमें फ़ुर्सत होगी आप चल फिर के ज़रा चाल दिखाएँ तो सही आप की जाने बला होगी क़यामत होगी मैं तो घुल घुल के यूँही हिज्र में जाँ दूँगा 'अज़ीज़' उस को मालूम मिरे बाद हक़ीक़त होगी