मुक़ाबले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं ये वलवले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं क़रीब आओ तो शायद समझ में आ जाए कि फ़ासले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं है मेरे साथ मिरे दुश्मनों से रब्त उन्हें ये सिलसिले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं अगर है कोई शिकायत तो मिल के बात करो मुरासिले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं किसी ने क़त्ल किया और सज़ा किसी को मिली ये फ़ैसले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं जो रहज़नों का तआवुन क़ुबूल करते हैं वो क़ाफ़िले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं तनाज़ेआत में बेहतर है सुल्ह कर लेना नए गिले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं ये लग़्ज़िशों का तसलसुल ये माज़रत पैहम ये मरहले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं चराग़-ए-हक़ हैं तो ख़ामोश क्यूँ हैं वो 'रज़्मी' बिना जले तो ग़लत-फ़हमियाँ बढ़ाते हैं