मुक़य्यद ज़ात के अंदर नहीं मैं चराग़-ए-गुम्बद-ए-बे-दर नहीं में मुझे भी रास्ता दे बहर-ए-ख़िल्क़त किसी फ़िरऔन का लश्कर नहीं मैं तू सुस्ताने को ठहरा है यक़ीनन तिरी पर्वाज़ का मेहवर नहीं मैं रहे कैसे मुसलसल एक मौसम किसी तस्वीर का मंज़र नहीं मैं तू जब चाहे मुझे तस्ख़ीर कर ले तिरे इम्कान से बाहर नहीं मैं वो फिर आया है 'राहत' सुल्ह करने कोई कह दे उसे घर पर नहीं मैं