मुख़्तसर सी वो मुलाक़ात बहुत अच्छी थी चंद लफ़्ज़ों में ढली बात बहुत अच्छी थी लम्हा लम्हा किसी उम्मीद पे जब गुज़रा था दिन बहुत ख़ूब था वो रात बहुत अच्छी थी बे-क़रारी ही में जब दिल को क़रार आता था हाए वो शिद्दत-ए-जज़्बात बहुत अच्छी थी हुस्न के रंग थे हर पहलू नुमायाँ जिस में अपनी तस्वीर-ए-ख़यालात बहुत अच्छी थी आँखें भर आई थीं मिलते या बिछड़ते उन से दोनों वक़्तों की वो बरसात बहुत अच्छी थी चाहना भी उन्हें और मुँह से न कुछ भी कहना दिल की ख़ामोश मुनाजात बहुत अच्छी थी लब पे आ जाती तो कुछ और भी अच्छा था 'रिशी' आप के दिल में जो थी बात बहुत अच्छी थी