लफ़्ज़ों में कैसा रंग-ए-मआ'नी दिखाई दे मेरे क़लम में आज रवानी दिखाई दे जैसे हो सत्ह-ए-ख़्वाब पे इक बे-सुतूँ मकाँ आलम तमाम दोस्तो फ़ानी दिखाई दे ये दाग़ दाग़ अपना दिल-ए-ग़म नसीब था यारो निगार-ख़ाना-ए-मानी दिखाई दे तुम तल्ख़ ज़िंदगी के हक़ाएक़ से बे-ख़बर तुम को हयात क्यूँ न सुहानी दिखाई दे वो मुंजमिद है बर्फ़ की मानिंद ऐ 'शमीम' बातों में जिस की शो'ला-बयानी दिखाई दे