मुमकिन है शब-ए-हिज्र दुआ का न असर हो है रात वो क्या रात कि जिस की न सहर हो ठुकरा के चले जाना है बर-हक़ तुम्हें लेकिन बस रखना ख़याल इतना जहाँ को न ख़बर हो वो शब जो सितारों से भरी हो तो हमें क्या पहलू में अगर तेरे मिरी शब न बसर हो गरजा है बड़े ज़ोर से बादल ज़रा देखो बिजली से गिरी जिस पे कहीं मेरा न घर हो जीवन है सफ़र 'जोश' ये तस्लीम है लेकिन महबूब का हो साथ तो क्या ख़ूब सफ़र हो