सर उठाएगी अगर रस्म-ए-जफ़ा मेरे बा'द मुझ को ढूँडेगा मिरा दश्त-ए-अना मेरे बा'द अपनी आवाज़ की सूरत में रहूँगा ज़िंदा मेरे परचम को उड़ाएगी हवा मेरे बा'द अपने कूचे से चले जाने पे मजबूर न कर किस से पूछेगा कोई तेरा पता मेरे बा'द इतनी उम्मीद तो है अपने पिसर से मुझ को मेरी तुर्बत पे जलाएगा दिया मेरे बा'द इश्क़ दुनिया पे इनायात किए जाता है किस को करने हैं ये सब क़र्ज़ अदा मेरे बा'द फूल सहरा में खिलाए हैं 'मुनव्वर' मैं ने ताकि महकी रहे कुछ देर फ़ज़ा मेरे बा'द