मुर्ग़-ए-जाँ को ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ जाल है जाल क्या ऐ जान-ए-जाँ जंजाल है आओ हाज़िर सर पए पामाल है जान लब पर बहर-ए-इस्तिक़बाल है ख़ाक हो सरसब्ज़ तुख़्म-ए-आशिक़ी है ज़मीं आस आसमान ग़िर्बाल है हुस्न यूसुफ़ का बिका बाज़ार में इश्क़ का राईल के इक़बाल है जो मिरे लब पर हुआ हसरत का ख़ून वो बुख़ार-ए-शौक़ का तबख़ाल है बोलता है आज-कल तूती मिरा ग़ैर की गलती वहाँ कब दाल है फ़ौज-ए-ख़त आती है ऐ सुल्तान-ए-हुस्न मुल्क-ए-रुख़ से तेरा इस्तीसाल है है निकलती बात उन की बात से चाल वो चलते हैं जिस में जाल है क्या लिखूँ वस्फ़ अच्छी सूरत का 'वक़ार' जिंस-ए-नाक़िस के लिए दल्लाल है