मुरीद-ए-दैर-ओ-हरम कम-से-कम ये काम करें हदीस-ए-दर्द-ए-मोहब्बत का ज़ौक़ आम करें यही मिन्नत-ए-आराम ये मुक़द्दर है ग़मों की धूप में राहत का एहतिमाम करें अभी न दें हमें इल्ज़ाम बेवफ़ाई का ख़ुद अपने वा'दों का कहिए वो एहतिराम करें जो तिश्ना-काम तिरे मय-कदे में हों साक़ी मिरे लहूँ से वो लबरेज़ अपने जाम करें अभी न जेब न दामन न आस्तीं का पता यक़ीन-ए-मौसम-ए-गुल हो तो इंतिज़ाम करें उन्हीं के लब पे है अम्न-ओ-अमीं का अफ़्साना वही जो हज़रत-ए-इंसाँ का क़त्ल-ए-आम करें गुमाँ से अहद-ए-यक़ीं तक सुकूँ की हो दुनिया ख़ुशी के साथ जो ग़म का भी एहतिमाम करें मज़ाक़-ए-अहल-ए-गुलिस्ताँ जो साथ दे जाए क़फ़स-नसीबों की यादों का एहतिराम करें ये दौर-ए-हश्र नहीं है तो और क्या है 'अमीं' किसे पुकारें यहाँ किस को हम-कलाम करें