वअ'दा जो था निबाह का तुम ने वफ़ा नहीं किया हम ने तो आज तक तुम्हें दिल से जुदा नहीं किया हम ही वो कम-नसीब थे माँगे मिली न मौत भी आप का क्या क़ुसूर है आप ने क्या नहीं किया मोम हुए पिघल गए संग बने चटख़ गए फिर भी ज़बाँ से आज तक हम ने गिला नहीं किया दश्त-ए-तलब में हर सदा गूँज बनी बिखर गई किस को सुलगती रेत ने आबला-पा नहीं किया वो तो ये कहिए सख़्त-जाँ हम थे कि वार सह गए तुम ने वगर्ना एक भी तीर ख़ता नहीं किया आज वफ़ा का वास्ता देता है वो सितम-ज़रीफ़ जिस ने ग़ुरूर-ए-हुस्न में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा नहीं किया वैसे तो सब ब-ज़ोम-ए-ख़्वेश सच्चे हैं लेन-देन के मिट्टी का जिस पे क़र्ज़ था उस ने अदा नहीं किया