मुसव्विर अपने तसव्वुर का ढूँढता है दवाम न जाम-ए-जम न विसाल-ए-सनम न शोहरत-ओ-नाम हयात जब्र-ए-मुसलसल है तू है जब्र-शिकन हर एक गाम पे आज़ादगी का तुझ को सलाम तसव्वुरात के फूलों में रंग भरता है हक़ीक़तों की कड़ी धूप देती है इनआ'म सहर भी होगी नसीम-ए-सहर भी गाएगी मगर ये रात मोहब्बत चराग़ ज़हर के जाम शराब पी भी तो पी चश्म-ए-मस्त साक़ी से मगर चढ़ाए पिया पे ग़म-ए-हयात के जाम मैं अपनी शम्अ' जलाता रहा हूँ तौबा पर मैं अपने शो'ले से होता रहा हूँ गर्म-ए-कलाम उसी से मेरे रग-ओ-पै में आतिश-ए-सय्याल उसी से मेरे तसव्वुर के ख़म में माह-ए-तमाम