मुश्किल है कि पहलू से जुदा दिल नहीं होता और मेरे सताने से वो ग़ाफ़िल नहीं होता पर्दे में अगर उस के मिरा दिल नहीं होता आईना रुख़-ए-यार के क़ाबिल नहीं होता जब क़स्द मुसम्मम है तो हर कार है आसाँ जो काम कि मुश्किल है वो मुश्किल नहीं होता गर पर्दा-नशीनी तुझे मंज़ूर थी दिलबर दिल मेरा तिरे वास्ते महमिल नहीं होता मय-ख़ाना को जाता हूँ ये तकरार अबस है नासेह तो किसी तौर से क़ाइल नहीं होता सफ़्फ़ाक कहा मैं उन्हें हँस के वो बोले हर साहब-ए-शमशीर तो क़ातिल नहीं होता दीदार-तलब का तालिब है उसे जल्वा दिखा दे आशिक़ तू ज़र-ओ-माल का साइल नहीं होता वो नूर-ए-मुबीं जो कि तजल्ली-ए-लक़ा है उस का ब-जुज़ आदम कोई हामिल नहीं होता मेरा तो पता ख़ाक भी रहता न 'जमीला' गर फ़ज़्ल-ए-इलाही मिरे शामिल नहीं होता