मुश्ताक़ हैं उश्शाक़ तिरी बाँकी अदा के ज़ख़्मी हैं मोहिब्बाँ तिरी शमशीर-ए-जफ़ा के हर पेच में चीरे के तिरे लिपटे हैं आशिक़ आलम के दिलाँ बंद हैं तुझ बंद-ए-क़बा के लर्ज़ां है तिरे दस्त अगे पंजा-ए-ख़ुर्शीद तुझ हुस्न अगे मात मलाएक हैं समा के तुझ ज़ुल्फ़ के हल्क़े में है दिल बे-सर ओ बे-पा टुक मेहर करो हाल उपर बे-सर-ओ-पा के तन्हा न 'वली' जग मुनीं लिखता है तिरे वस्फ़ दफ़्तर लिखे आलम ने तिरी मद्ह-ओ-सना के