मुस्कान का तक जब कोई इम्कान नहीं था तब हँसना वो भी ज़ोर से आसान नहीं था कुछ मुतमइन आँखों में भी चाहत की कमी थी कुछ ख़्वाब में ही चाह का सामान नहीं था बिछड़े तो खुला मुझ पे कि बस कहने को था सब मैं अस्ल में यारो किसी की जान नहीं था रुक जा कहूँ मैं और तू रुक जाए ये कब से तू कौन है पहले तो ये इंसान नहीं था मैं मान लूँ वो फ़िक्र उड़ाता था धुएँ में और इतने धुएँ से वो परेशान नहीं था