मुस्कुरा कर आशिक़ों पर मेहरबानी कीजिए बुलबुलों की पास-ए-ख़ातिर गुल-फ़िशानी कीजिए इश्क़ ने अज़-बस दिया है ज़र्द-रंगी का रिवाज अर्ग़ुवानी आँसुओं कूँ ज़ाफ़रानी कीजिए मय-कश-ए-ग़म कूँ शब-ए-महताब है मू-ए-सफ़ेद मौसम-ए-पीरी में सामान-ए-जवानी कीजिए हिज्र की रातों में लाज़िम है बयान-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार नींद तो जाती रही है क़िस्सा-ख़्वानी कीजिए यार-ए-जानी तो ज़माने में निपट कम-याब हैं कीजिए दुश्मन अगर अपना तो जानी कीजिए मत हो ऐ दिल तूँ सदा बुलबुल हज़ारों फूल का एक बाक़ी बूझिए बाक़ी कूँ फ़ानी कीजिए सब समुंदर मुत्तफ़िक़ हो मुझ कूँ कहते हैं 'सिराज' शोला-रू के वस्फ़ में आतिश-बयानी कीजिए