मुस्कुराते हुए चेहरे से वो मंज़र निकला जेब जब उस की टटोली मैं ने ख़ंजर निकला चैन से क़ब्र में भी रहने नहीं देता है और कोई नहीं वो मेरा मुजाविर निकला बाँट देता है वो झोली में भरी सब ख़ुशियाँ हम ने समझा जिसे क़तरा वो समुंदर निकला अपने आँचल में छुपा लेती है दुनिया के ग़म दिल मेरी माँ का समुंदर से भी बढ़ कर निकला आज आश्रम में पटक आया वो बूढ़ी माँ को मोम हम जिस को समझते रहे पत्थर निकला मोम हम जिस को समझते रहे पत्थर निकला पड़ गए पीछे मिरे आज ज़माने वाले जब मैं नफ़रत भरी दीवार गिरा कर निकला वक़्त कटता नहीं अब उन के बिना यारों अब दस महीने तो गए अब ये नवम्बर निकला दस महीने तो गए अब ये नवम्बर निकला उस को पूजा मैं ने भगवान समझ कर 'इंदौरी' आज़माया तो फ़क़त राह का पत्थर निकला