मुस्तमिन्दाँ को सताया न करो बात को हम से दुराया न करो दिल शिकंजे में न डालो मेरा ज़ुल्फ़ को गूँध बनाया न करो हुस्न-ए-बे-साख़्ता भाता है मुझे सुर्मा अँखियाँ में लगाया न करो तुम से मुझ दिल को बहुत है उम्मीद मुझ से मिस्कीं को कुढ़ाया न करो बे-दिलाँ सूँ न फिरा दो मुखड़ा हम से तुम आँख चुराया न करो मुख़्लिस अपने को न मारो नाहक़ हक़्क़-ए-इख़्लास भुलाया न करो इश्क़ में 'फ़ाएज़'-ए-शैदा मुम्ताज़ इस कूँ सब साथ मिलाया न करो