मोहब्बत बा'इस-ए-ना-मेहरबानी होती जाती है हमारी सारी मेहनत धूल-धानी होती जाती है हिकायत हूँ जो रातों को हमेशा होती रहती है शिकायत हूँ जो आपस में ज़बानी होती जाती है तिरा ग़म आज तक ताज़ा है ज़ालिम वर्ना दुनिया में नई शय दिन गुज़रने से पुरानी होती जाती है तुम्हारी याद में अहल-ए-जहाँ मर मर के जीते हैं क़ज़ा लोगों के हक़ में ज़िंदगानी होती जाती है बड़ा इल्ज़ाम ठहरा है तअल्लुक़ रिश्ता-दारी का क़राबत की मोहब्बत बद-गुमानी होती जाती है यही तंबीह मिलने पर उन्हें मजबूर करती है यही ताकीद गोया ज़िद की बानी होती जाती है मिरे ग़म में वो मजबूरी से उन हालों को पहुँचे हैं कि अब उन की नज़ाकत ना-तवानी होती जाती है तिरे कूचे में अब गर्दिश की सूरत पड़ती जाती है ज़मीं की चाल दौर-ए-आसमानी होती जाती है मिरे पहलू में दिल कब था लहू की बूँद थी 'मुज़्तर' सो अब वो बूँद भी क़िस्मत से पानी होती जाती है