न आया मज़ा शब की तन्हाइयों में सहर हो गई चंद अंगड़ाइयों में न रंगीनियों में न रानाइयों में नज़र घिर गई अपनी परछाइयों में मुझे मुस्कुरा मुस्कुरा कर न देखो मिरे साथ तुम भी हो रुस्वाइयों में ग़ज़ब हो गया उन की महफ़िल से आना घिरा जा रहा हूँ तमाशाइयों में मोहब्बत है या आज तर्क-ए-मोहब्बत ज़रा मिल तो जाएँ वो तन्हाइयों में इधर आओ तुम को नज़र लग न जाए छुपा लूँ तुम्हें दिल की गहराइयों में अरे सुनने वालो ये नग़्मे नहीं हैं मिरे दिल की चीख़ें हैं शहनाइयों में वो ऐ 'कैफ़' जिस दिन से मेरे हुए हैं तो सारा ज़माना है शैदाइयों में