न अपनी बात न मेरा क़ुसूर लिक्खा था शिकायतों से भरा ख़त ज़रूर लिक्खा था रसूल आए तो दहशत-गरों के बीच आए अँधेरी रात की क़िस्मत में नूर लिखा था मैं चाहता भी जो मिलना तो उन से क्या मिलता जबीं पे दूर से देखा ग़ुरूर लिक्खा था वो घर कि जिस में किसी को किसी से उन्स नहीं बड़े से बोर्ड पे दार-उस-सुरूर लिक्खा था 'नक़ीब' को थी फ़क़त सुर्ख़ियों से दिलचस्पी जो मुद्दआ' था वो बैनस्सुतूर लिक्खा था