न छोड़ी नस्ल भी बाक़ी अरी बर्क़-ए-तपाँ तू ने मए अंडों और बच्चों के है फूँका आशियाँ तू ने अभी राज़ी हुए थे वो अभी हाथ उन पे डाला था अबे मुर्ग़-ए-सहर दे दी अभी से क्यों अज़ाँ तू ने शब-ए-वा'दा ज़रा तोड़ा-मरोड़ी की तो फ़रमाया हिला दीं हुस्न के गुम्बद की दोनों बुर्जीयाँ तू ने