न डगमगाए कभी हम वफ़ा के रस्ते में चराग़ हम ने जलाए हवा के रस्ते में किसे लगाए गले और कहाँ कहाँ ठहरे हज़ार ग़ुंचा-ओ-गुल हैं सबा के रस्ते में ख़ुदा का नाम कोई ले तो चौंक उठते हैं मिले हैं हम को वो रहबर ख़ुदा के रस्ते में कहीं सलासिल-ए-तस्बीह और कहीं ज़ुन्नार बिछे हैं दाम बहुत मुद्दआ के रस्ते में अभी वो मंज़िल-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र नहीं आई है आदमी अभी जुर्म ओ सज़ा के रस्ते में हैं आज भी वही दार-ओ-रसन वही ज़िंदाँ हर इक निगाह-ए-रुमूज़-आश्ना के रस्ते में ये नफ़रतों की फ़सीलें जहालतों के हिसार न रह सकेंगे हमारी सदा के रस्ते में मिटा सके न कोई सैल-ए-इंक़लाब जिन्हें वो नक़्श छोड़े हैं हम ने वफ़ा के रस्ते में ज़माना एक सा 'जालिब' सदा नहीं रहता चलेंगे हम भी कभी सर उठा के रस्ते में