न फ़लक होगा न ये कूचा-ए-क़ातिल होगा मिरे कहने में किसी दिन जो मिरा दिल होगा जब नुमायाँ वो सवार-ए-रह-ए-मंज़िल होगा न तो मैं आप में हूँगा न मिरा दिल होगा आधी रात आ गई बस बस दिल-ए-बेताब सँभल हम समझते हैं जो इस कर्ब का हासिल होगा रुख़्सत ऐ वहशत-ए-तन्हाई-ओ-ग़ुर्बत रुख़्सत ख़ौफ़ ही क्या है जो हमराह मिरे दिल होगा रात का ख़्वाब नहीं जिस की हर इक दे ताबीर ये वो अरमान है पूरा जो ब-मुश्किल होगा तेरा क्या ज़िक्र है ज़िंदाँ की हिलेगी दीवार नाला-कश जब कोई पाबंद-ए-सलासिल होगा टाल दीं मैं ने ये कह कह के ज़िदें बचपन की आइना भी कोई शय है जो मुक़ाबिल होगा डूबने जाएगा शायद कोई मायूस विसाल मजमा-ए-आम सुना है लब-ए-साहिल होगा चौदहवाँ साल उसे देता है मुज़्दा 'आलिम' ले मुबारक हो कि अब तू मह-ए-कामिल होगा