न ग़ौर से देख मेरे दिल का कबाड़ ऐसे कि मैं कभी भी नहीं रहा था उजाड़ ऐसे बुरा हो तेरा जो बंद रखे थे मैं ने घर के तो खोल आया बग़ैर पूछे किवाड़ ऐसे जो मेरी रूह-ओ-बदन के टाँके उधेड़ डाले तो मेरी नज़रों पे अपनी नज़रों को गाड़ ऐसे समझ न पाया कि तोड़ देता या साथ रखता कि इस तअ'ल्लुक़ में आ गई थी दराड़ ऐसे ऐ इश्क़ रह जाऊँ फड़फड़ा के यूँ कर दे बे-बस सो मेरी गर्दन में अपने दाँतों को गाड़ ऐसे तो मेरी आदत से मेरी फ़ितरत ही हो चला है अभी भी कहता हूँ मुझ को तू न बिगाड़ ऐसे ये मेरे बाज़ू ही जंग का फ़ैसला करेंगे पकड़ ले तलवार और मुझ को पछाड़ ऐसे तुम्हारे ग़म का पहाड़ टूटा तो फिर ये जाना पहाड़ों पर ही तो टूटते हैं पहाड़ ऐसे हज़ार मिन्नत हज़ार मिन्नत हज़ार मेहनत तुझे मनाने को कर रहा हूँ जुगाड़ ऐसे