न गुल में न अब गुल्सिताँ ही में ढूँडो मोहब्बत को बस आस्ताँ ही में ढूँडो निशानी मोहब्बत की तुम को मिलेगी किसी एक धुँदले निशाँ ही में ढूँडो पता शहर-ए-दिल की बहारों का अब तुम कहीं बाम-ओ-दर की ख़िज़ाँ ही में ढूँडो अगर ढूँढना है वजूद अपना तुम को किसी दिल के उजड़े मकाँ ही में ढूँडो मिलेगी अंधेरे में उजली किरन भी उसे सोच की कहकशाँ ही में ढूँडो वफ़ा की कहानी में ढूँडो मुझे तुम कभी हिज्र की दास्ताँ ही में ढूँडो हो जिस पर यक़ीं तुम को 'शाहीं' अज़ल से उसे अपने वहम-ओ-गुमाँ ही में ढूँडो