न गुल न सर्व मियान-ए-बहार होता है हमारी ख़ाक से पैदा चिनार होता है कभी जो जल्वा-ए-रुख़्सार-ए-यार होता है चराग़-ए-तूर चराग़-ए-मज़ार होता है उठा जनाज़ा जो मेरा क़ज़ा लगी कहने कि जो पियादा है आख़िर सवार होता है मिला के ख़ाक में तन को गई बहिश्त में रूह किसी का कौन ज़माने में यार होता है बजा है तख़्त-ए-सुलैमाँ पे भी जो मारी लात हर एक मुर्ग़ यहाँ ताजदार होता है न अपने घर में मुझे ग़ैर से मिला ऐ हूर बहिश्त में ये अज़ाब-ए-फ़िशार होता है उरूज 'अर्श' जो मंज़ूर है जला दिल को कि आग लगती है जब सर्द अनार होता है