न हो गर ध्यान में चेहरा किसी का बहुत मुश्किल सफ़र है ज़िंदगी का गली-कूचे बहुत रौशन हैं लेकिन घरों में मसअला है रौशनी का चुनूँ पलकों से कब तक संग-रेज़े ख़ुदावंदा कोई आँसू ख़ुशी का ज़मीं सदियों पुरानी हो चुकी है सहेगी बोझ कब तक आदमी का न-जाने और कितना फ़ासला है हमारी ज़िंदगी से ज़िंदगी का कोई ख़ुद से मुझे कमतर समझ ले ये मतलब भी नहीं है आजिज़ी का तलब ने छीन ली बीनाई ख़ावर करूँ क्या राह की मैं रौशनी का