न हो मर्ज़ी ख़ुदा की तो किसी से कुछ नहीं होता जो चाहे आदमी तो आदमी से कुछ नहीं होता कहाँ के दोस्त कैसे अक़रबा जब वक़्त पड़ता है मुसीबत में किसी की दोस्ती से कुछ नहीं होता अमल की ज़िंदगानी दर-हक़ीक़त ज़िंदगानी है जिए जाओ तो ख़ाली ज़िंदगी से कुछ नहीं होता अजल आएगी जाँ जाएगी इक साअत-मुअ'य्यन पर अज़ीज़-ओ-अक़रिबा की पैरवी से कुछ नहीं होता अदब के क़द्र-दाँ बज़्म-ए-अदब से उठते जाते हैं लो रक्खो शाइ'री अब शाइ'री से कुछ नहीं होता मिरी हालत ये कुछ मख़्सूस दिल बेचैन हैं लेकिन ये मुश्किल है किसी की बेकली से कुछ नहीं होता 'सफ़ीर' इस ज़िंदगी में वक़्त भी तेवर बदलता न घबराओ किसी की दुश्मनी से कुछ नहीं होता