न हो ठिकाना कोई जिस का तेरे घर के सिवा वो उठ के जाए कहाँ तेरी रहगुज़र के सिवा दिल-ए-हज़ीं की तमन्ना निगाह के मतलूब ख़ुदा रखे वो सभी कुछ हैं चारागर के सिवा रज़ा-ए-दोस्त तब-ओ-ताब सीना-ए-दुश्मन दुआ को और भी कुछ चाहिए असर के सिवा वो सोज़-ए-दिल कि जिसे लोग जान कहते हैं नहीं है और कोई शय तिरी नज़र के सिवा पयाम-ए-ख़ंदा-ए-गुल और नशात-ए-सुब्ह-ए-चमन सबा के पास है सब कुछ तिरी ख़बर के सिवा है जान-ए-बुलबुल-ए-शैदा तो चार तिनकों में क़फ़स में कुछ भी नहीं एक मुश्त-ए-पर के सिवा मिला है अज़्मत-ए-आदम के नाम से जो मुझे वो क़र्ज़ किस से अदा होगा मेरे सर के सिवा उन्ही को नाला-ए-बुलबुल कहें कि ख़ंदा-ए-गुल चमन में कुछ भी नहीं शो'ला-ए-शरर के सिवा सुकून-ए-दिल के लिए हम कहाँ कहाँ न गए 'सरोश' कुछ न मिला ज़हमत-ए-सफ़र के सिवा