न होंगे हम तो ये रंग-ए-गुलिस्ताँ कौन देखेगा बहारों से ही तख़रीब-ए-बहाराँ कौन देखेगा सर-ए-महशर जफ़ाओं की शिकायत बर-महल लेकिन फिर इन मासूम नज़रों को पशीमाँ कौन देखेगा बजा है लाला ओ गुल की तबाही का तसव्वुर भी मगर ये मंज़र-ए-महशर-ब-दामाँ कौन देखेगा मुझे तस्लीम है क़ैद-ए-क़फ़स से मौत बेहतर है नशेमन पर हुजूम-ए-बर्क़-ओ-बाराँ कौन देखेगा हसीं ताबीर-ए-मुस्तक़बिल सही इस की मगर 'अनवर' नए फ़ित्नों का अब ख़्वाब-ए-परेशाँ कौन देखेगा