न हुई साफ़ तबीअत ही तो है रह गई दिल में कुदूरत ही तो है भा गईं दिल को अदाएँ उन की खुब गई आँखों में सूरत ही तो है मेरी मय्यत पे न आए न सही न हुई आप को फ़ुर्सत ही तो है नहीं करता मैं जफ़ा का शिकवा आप क्या कीजिए आदत ही तो है नहीं आता कसी पहलू आराम नहीं कटती शब-ए-फ़ुर्क़त ही तो है निकली क़ातिल न तिरे तीर के साथ दिल ही में रह गई हसरत ही तो है मुझ से आसी पे ये बख़्शिश ये करम बंदा-परवर तरी रहमत ही तो है न टली सर से बुला-ए-फ़ुर्क़त पड़ गई जान पे आफ़त ही तो है हम ने फेरा न दिल अपना तुझ से जान दे बैठे मुरव्वत ही तो है हश्र बरपा है तरी क़ामत से ये भी अंदाज़-ए-क़यामत ही तो है न रहा ज़ब्त का यारा 'अंजुम' न छुपी हम से मोहब्बत ही तो है